------ तर्ज - होंठों को छूलो तुम मेरा गीत अमर कर दो ------
------ फिल्म - प्रेमग्रंथ ------
। । द्रौपदी की पुकार । ।
अब लाज कहीं मोहन द्रौपदी की न लुट जाये,
आँखों में भरे मोती अनमोल न लुट जाएँ । ।
घनश्याम मेरी बिगड़ी जो आज न बन पायी,
इस तरह ये लगता है तेरा नाम न मिट जाये । । अब । ।
यह दुष्ट दुशासन है खींचे है मेरी साड़ी,
आजाओ मेरे भैया यह वक्त न कट जाये । । अब । ।
मल्लाह ने मुह मोड़ा दीखे न किनारा है,
विनती यह "पदम्" की है नैया न पलट जाये । । अब । ।
-: इति :-
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