तर्ज - दीवाने हैं दीवानों को न घर चाहिए
फिल्म - ज़ंजीर
फिल्म - ज़ंजीर
सबाली हूँ। सबाली को ना फन चाहिये न धन चाहिये,
गज़ानन्द तुम्हारी शरण चाहिये - 2 ।।
कोई रिद्धि सिद्धि के दाता कहें - 2,
कोई ज्ञान बुद्धि विधाता कहें - 2,
तुम्हारे गुण गायें ऐसा मन चाहिये न धन चाहिये ।। गजानन्द।।
माँ गौरा की आँखों के तारे हो तुम - 2,
पिता भोले शिव को दुलारे हो तुम – 2,
गुणों के गणराजा के भजन चाहिये न धन चाहिये ।। गजानन्द।।
करू में तुम्हारी प्रथम वन्दना - 2,
यह सच है ना जानू तेरी साधना - 2,
‘पदम’ को तेरी भक्ति की लगन चाहिये न धन चाहिये ।। गजानन्द ।।
-: इति :-
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