तर्ज :- कव्वाली
आज देखो शिवालय में कितने शिव के दर्शन को आये हुए हैं,
बस यही कामना को सजाये हम भी डेरा लगाए हुए हैं ||
चाल बहकी जटाएं भी बिखरी,
झूम कर मस्त डमरू की धुन पर,
इस तरह आ रहे वो जैसे गांजे की दम लगाये हुए हैं || आज ||
छोड़ दो आज नंदी सवारी,
भोले आ जाओ तुम नंगे पाओं,
आइये आपकी राह में हम अपनी पलकें बिछाए हुए हैं || आज ||
जिसने शंकर का गुणगान गाया,
उसने मुँह माँगा वरदान पाया,
ऐसे दानी हैं जो भस्मासुर को भस्म कगन लुटाये हुए हैं || आज ||
हम ना जायेंगे गंगा नहाने,
राज़ की बात है कौन जाने,
ऐ "पदम्" मन के मंदिर में हम तो गंगा धारी बसाए हुए हैं
धर्म पर धन लुटाने जाते हैं, नाम अपना कमाने जाते हैं ||
पाप धुल जाएँ किसी तरह से लोग गंगा नहाने जाते हैं ||
-:इति:-
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