तर्ज :- कोन दिशा में लेके चला रे
शिव को भजो रे बीती जायेरे उमरिया,
सुमर सुमर यह सुहाना अवसर मति जावन दे - 2 ।।
माँ के गर्भ में लटक रहा है विनती करे हज़ार हो,
सारा जीवन करदूं अर्पण तुम करदो उपकार हो,
ऐसे नरक से मुझको निकालो जग के पालनहार हो,
देर करो ना मेरी लेलो जी खबरिया ।। हरि ।।
बचपन खेल कूद में बीता, और जवानी आई हो,
वादा करके भूल गया जब काम ने ली अंगड़ाई हो,
त्रिया के संग मोज उड़ाकर सारी रैन गवॉई हो,
प्रेम नगर की ढूंढें रे डगरिया ।। हरि।।
ढल गया यौवन आया बुढ़ापा काया भई लाचार हो,
संगी साथी काम न आये मौत खड़ी तेरे द्वार हो,
भजन बिना सब उमर बिताई करता सोच विचार हो,
पग पग चलूं कैसे टूटी रे कमरिया ।। हरि।।
कोड़ी - कोड़ी जोड़ के तूने कंचन महल बनाये हो,
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