------ तर्ज - ऐसी दुपहरिया न जाऊं रे डोली ( लोकगीत ) ------
गणपत को कैसे मनाएं रे, देवा मानत नहिंयाँ ||
हाथी और घोड़ा जाको कछु नहीं भाये,
मूषा पे घूमन जाए रे || देवा ||
पेड़ा और बर्फी जाको कछु नहीं भाये,
लड्डूअन का भोग लगाये रे || देवों ||
तीन लोक परिक्रमा न भाये,
मात पिता सर नवाए रे || देवा ||
स्वर्ग की अप्सरा मन नहीं भाये,
रिद्धि सिद्धि संग ब्याहे रे || देवा ||
"पदम्" के विघ्न कलेश न भाये,
विघ्न हरण कहलाये रे || देवा ||
-: इति :-
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