दिल-ऐ-अरमानों को रोको न मचल जाने दो |
आज बिछड़े शमा परबाने को मिल जाने दो ||
गले लग जाने को महफ़िल में शमा जलती है,
उसी को आग में परबानो को जल जाने दो ||
भवें तनी हैं कि जैसे कमान हो कोई,
तीर-ऐ-नज़रों को तो दीवाने पे चल जाने दो ||
बेवफा ऐसे न मारो किसी हमराही को,
अपने दीवानों को थोड़ा तो संभल जाने दो ||
करूं क्या दिल का भरोसा यह मचल जायेगा,
इसलिए कहता हूँ "पदम्" को ग़ज़ल गाने दो ||
-: इति :-
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