------ तर्ज:- में तो दीवाना,भोले का दीवाना -----
में तो दीवाना,गणपति का दीवाना
बड़े ज्ञानी है, गणराजा ,बड़े ज्ञानी
------ || श्री गणेश जी की महिमा || ------
बड़े ज्ञानी है,गणराजा,बड़े ज्ञानी
यही जग में अमर है कहानी रे |
गणराजा बड़े हैं ज्ञानी रे ||
(1)
पूरी हुई तपस्या, शंकर जी लौट आये
देखा महल के द्वारे, बालक को खड़ा पाये
शंकर ने उससे पूछा, क्या नाम है तुम्हारा
द्वारे पे पहरा देना, क्या काम है तुम्हारा
गौरा से मिलूँगा मैं, उनका मुझे पता दे
क्यों रोकता है मुझको, चल हट जा रास्ता दे
(2)
इस वक्त माता मेरी, स्नान कर रही है
अन्दर कोई भी जाए, यह आज्ञा नहीं है
जग जानता है उनको, गौरा है माता मेरी
बेटा हूँ मैं उन्हीं का, वो है विधाता मेरी
यह मुझको आज्ञा है, द्वारे से न हटूंगा
चाहे जान चली जाये, अन्दर न जाने दूंगा
(3)
इस बाल हठ पर शिव को, अचरज हुआ है भारी
गौरा बिना पति के, कैसे बनी महतारी
गुस्से में आये शंकर, त्रशूल जो संभाला
एक बार में ही बालक का शीश काट डाला
इतने में ही अचानक , गौरा नहा के आयीं
स्वामी के आगमन पर, गौरा ने दी दुहाई
द्वारे नजर गयी तो, बालक को मरा पाया
गौरा ने कहा शिव से, कैसी है नाथ माया
(4)
इतने बड़े महल में, बैचैन अकेली थी
न दास थे न दासी, न कोई सहेली थी
सुन्दर से एक बालक, का पुतला बना कर के
फिर जान उसमें डाली, अमृत को छिड़क कर के
आईं हजार खुशियाँ, आँचल में सिमट कर के
इतने जतन किये, यह लाल मैंने पाया
पर आपके गुस्से ने, बेटे का सुख छिनाया
(5)
शिव ने बुला गुणों को, यह आज्ञा सुनाई
बेटे से मुंह को मोड़े, जो सो रही हो माई
जल्दी से जाकर उसका, तुम शीश काट लाओ
बीते न एक पल भी, देरी नहीं लगाओ
पल भी न बीत पाया, गण लौट कर के आये
हथनी के एक बच्चे का, शीश काट लाये
(6)
बालक के धड़ से शिव ने, गज शीश को लगाया
डमरू बजाके शिव ने, ऐसी दिखाई माया
ऊँगली से छिड़का अमृत, बालक में जान आई
सुत को गले लगाके, माँ गौरा मुस्कुराई
गणेश जी देवों के, सरताज बने केसे
आगे "पदम" बताओ ,गणराज बने केसे
(7)
शिव ने सभी देवों को आदेश सुनाया है
देना है अब परीक्षा,यह सब को बताया है
त्रिलोक की परिक्रमा,जो पहले लगाएगा
शुभ कार्यों में प्रथम पूजन के योग्य होगा
ले अपने अपने वाहन सवार हो गए है
हर देव विजय पाने को तैयार हो गए है
वाहन पे कर सबारी,सब देव चल दिए है
कई रात ढल गईं है ,कई दिन भी ढल गए है
(8)
गणेश जी ने अपने मूषक को बुलाया है
मूषक पे कर सवारी,यह ध्यान में आया है
त्रिलोक के स्वामी है,माता पिता हमारे
इनकी करू परिक्रमा,गणेश यूं बिचारे
माता पिता दोनों की,परिक्रमा जब लगाई
शिव जी समझ गए है,गणेश की चतुराई
वो ज्ञान से बुद्धि से, गणराज हो गए है
याने"पदम्"वह देवों के, सरताज हो गए है
-: इति :-
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