मेरे बापू की हरदम यह आबाज थी, प्राण जायें तो मेरे बतन के लिये,
हिन्द की सेवा करने में पैदा हुआ, मैं मारूंगा तो मेरे बतन के लिये ||
हाथ में था तिरंगा यह थी आरजू, मरते दम तक तिरंगा न छोडूंगा मैं,
मैं तिरंगे के नीचे ही तोडूंगा दम यह तिरंगा है मेरे कफ़न क लिए ||
मालोजर पर कभी भी न तसब्बुर किया, अपना सब कुछ बतन पर निछावर किया,
एक थी चीज तो पास उनके बची, वह भी खादी की धोती बदन क लिए ||
जान जाये तो जाये मुझे गम नहीं, सर झुकेगा नहीं गैर के सामने,
हर समय प्यारे बापू ने हंस कर कहा सर कता दूंगा अपने वतन के लिए ||
हो मुबारिक बहारें यह आज़ादी की हिन्द के नौजवानों ऐ बीरों तुम्हें,
हर कलि यह कहे धन्य ओ बागवां खून से जिसने सींचा चमन क लिए |
मेरे हिन्दुस्तान की जमीं पे अगर कोई दुश्मन ने डाली जो तिरछी नज़र,
वक़्त आया "पदम्" तो कलम फेंककर मैं उठा लूँगा तलबार रण के लिए ||
-: इति :-
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